हमारे सौर मंडल का सबसे सुंदर दिखने वाला ग्रह शनि रविवार, अट्ठाइस अप्रैल को पृथ्वी के सबसे करीब (लगभग 131 करोड़ 90 लाख किमी) होगा। खगोल वैज्ञानिक तो इस ग्रह का अध्ययन करेंगे ही, आप भी इस अद्भुत नजारे को देख सकते हैं। आओ जानें, इस ग्रह के बारे में कुछ दिलचस्प तथ्य..
शनि की कहानी
-इससे पहले 15 अप्रैल 2012 को शनि पृथ्वी के पास आया था, तब उनका फासला औसतन 130 करोड़ 40 लाख किलोमीटर था।
-28 अप्रैल को सूर्य अस्त होने के ठीक बाद शनि पूर्व दिशा में दिखेगा और तड़के पश्चिम में डूबेगा। रात भर यह ग्रह आकाश में दिखेगा।
-चमकदार होने के कारण यह सहजता से दिखाई देगा, लेकिन ग्रह के वलय (रिंग) को टेलिस्कोप की सहायता से ही देखा जा सकेगा।
-हमारे सौरमंडल में शनि सूरज से छठे स्थान पर है और बृहस्पति के बाद सबसे बड़ा ग्रह है। इसके कक्षीय परिभ्रमण का पथ लगभग 14,29,40,000 किलोमीटर है।
-इसका नाम रोमन कृषि के देवता सैटर्न पर रखा गया।
-इसका व्यास पृथ्वी के लगभग 9 गुना अधिक और भार पृथ्वी से 95 गुना अधिक है।
-यह ग्रह 75 फीसद हाइड्रोजन और 25 फीसद हीलियम से बना है।
- इसके भीतर कोर आयरन, निकिल और रॉक (सिलिकॉन और ऑक्सीजन कंपाउंड) है, जो मैटेलिक हाइड्रोजन की गहरी परत से घिरा हुआ है। इसके वातावरण में लिक्विड हाइड्रोजन, लिक्विड हीलियम और बाहरी गैसों की लेयर है।
- माना जाता है कि शनि पर चलने वाली हवा 1800 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार तक पहुंच सकती है। यह बृहस्पति से अधिक, लेकिन नैप्च्यून से कम है।
-शनि के कुल 60 उपग्रह खोजे गए हैं, जिनमें टाइटन को सबसे बड़ा माना गया है। टाइटन बृहस्पति के उपग्रह गिनिमेड के बाद दूसरा सबसे बड़ा उपग्रह है।
-माना जाता है कि शनि की खोज प्राचीन काल में ही हो गई थी, किंतु दूरबीन की सहायता से इसे गैलीलियो गैलिली ने सन 1610 में खोजा था।
-हमारे सौर मंडल में चार ग्रहों (बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेपच्यून)को गैस जॉयंट्स कहा जाता है, क्योंकि इन विशाल ग्रहों में अधिकतर गैसेज होती हैं।
-इस ग्रह को सूरज का एक चक्कर काटने में 29.5 वर्ष लगते हैं। शनि का व्यास 1 लाख 20 हजार किलोमीटर है।
-इसका तापमान शून्य से 180 डिग्री सेल्सियस कम है।
शनि के वलय
-शनि के चारों तरफ बना वलय 2 लाख 70 हजार किमी तक फैला है, जबकि मोटाई में यह एक किलोमीटर से भी कम है।
-यह वलय बर्फ और बर्फ मिश्रित पथरीले पदाथरें से बनते हैं।
-एक खोज के अनुसार, शनि के वलय 4-5 अरब वर्ष पहले बने हो सकते हैं, जिस समय सौर प्रणाली अपनी निर्माण अवस्था में ही थी। पहले माना जाता था कि ये छल्ले डायनासोर युग में अस्तित्व में आए थे।
-अमेरिका में वैज्ञानिकों ने नासा के केसनी अंतरिक्ष यान द्वारा एकत्र आंकड़ों का अध्ययन कर बताया था कि शनि ग्रह के छल्ले उस समय अस्तित्व में आए जब सौर प्रणाली अपनी शैशवावस्था में थी। साइंस डेली में यह जानकारी दी गई।
-1970 के दशक में नासा के वायजर अंतरिक्ष यान और बाद में हब्बल स्पेस टेलिस्कोप से जुटाए गए आंकड़ों से वैज्ञानिक यह मानने लगे थे कि शनि ग्रह केछल्ले संभवत: किसी धूमकेतु के बड़े चंद्रमा टाइटन से टकराने के कारण पैदा हुए।
-केसिनी अल्ट्रावायलेट इमेजिंग स्पेक्ट्रोग्राफ के मुख्य जांचकर्ता प्रोफेसर लैरी एस्पोसिटो ने शोध के बाद यह बताया था कि ये छल्ले हमेशा से थे, लेकिन उनमें लगातार बदलाव आता रहा है।
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