#तवांग_धरती_का_छुपा _स्वर्ग
#tawang#hidden#heaven#of#earth
पूर्वोत्तर भारत की यात्रा के क्रम में हम अपनी मंजिल के अत्यंत करीब पहुंचने से पूर्व ही सुंदर नजारों से आनंदित हो गये थे। #तवांग जिसे धरती का #गुप्त_स्वर्ग (#Hidden_Heaven) भी कहा जा सकता है, वास्तव में स्वर्ग ही है। हम अनेक स्थानों पर गये हैं तथा बर्फ को भी देखा है,परंतु यहां का खूबसूरत नजारा तथा बर्फ की चादरों से ढकी सुन्दर पहाड़ों की चोटियां कभी सुनहरी तो कभी चांदी सी चमकत- मनमोहक स्वरुप दर्शा रही थीं। लंबी यात्रा से हम थोड़े थके तो थे लेकिन बेहतरीन नजारों ने थकावट दूर कर दिया। रास्ते के मनमोहक दृश्य सभी ने अपनी आंखों से दिल में उतारा तथा आधुनिक तीसरी आंख (कैमरों) में कैद किया ताकि सदा याद रहे।वास्तव में मन को मोहने वाले नज़ारे थे।#तवांग पहुंचकर हम लोगों ने होटल में चेकिंग किया और भोजन कर विश्राम करने यह सोच कर चले गये कि अभी ट्रेलर ऐसा है तो फिल्म कैसी होगी।अगली प्यारी सुबह सभी स्वर्ग का दर्शन करने #बुमला_पास,#माधुरी_लेक को प्रस्थान कर गए।
मैंने स्वर्ग तो नहीं देखा है पर शायद जो कल्पना की है या फिल्मों तथा अन्य किताबों से जो परिदृश्य उत्पन्न हुआ है उससे भी सुंदर नजारा तवांग की वादियों में देखने को मिला। #बुमला_पास तिब्बत की सीमा से सटा है, जो क्षेत्र चीन के कब्जे में है। वहां बिहार रेजिमेंट के जवान पूरी मुस्तैदी से बर्फ से ढके पहाड़ो की चोटियों पर भारतीय सीमा की रक्षा कर रहे हैं। वहां का नजारा मन को मोहने वाला था, पर्यटक लाखों खर्च कर वहां पहुंचते हैं और पहुंचते ही कहते हैं पैसा वसूल।
#तवांग के #माधुरी_लेक ने भी हमारा मन मोह लिया। कहा जाता है कि यहां का गांव 70 के दशक में भूकंप से तबाह हो गया था तथा एक झील के रूप में परिवर्तित हो गया है।आज भी झील में से पेड़ों की शाखाएं दिखती है,पीछे बर्फ से ढके पहाड़ों की चोटियां तथा सूर्य की रोशनी अलौकिक छटा बिखेरती है। सेना ने इस स्थान को बहुत ही खूबसूरती से पर्यटकों के लिए तैयार किया है। यहां जाने के मार्ग में भारतीय सेना की रक्षा तैयारियों को देख मन गर्व से प्रफुल्लित हो गया।
“भारतीय सेना है तो ही हम हैं”
भारतीय सेना के जवानों के जज्बे को सलाम।।
तवांग के दो दिन के प्रवास ने हमारे सारे गमों को 2दो दिनों के लिए भुलवा दिया।
ऐसा माना जाता है कि तवांग शब्द की व्युत्पत्ति तवांग टाउनशिप के पश्चिमी भाग के साथ-साथ स्थित पर्वत श्रेणी पर बने तवांग मठ से हुई है। ‘ता’ का अर्थ होता है- ‘घोड़ा’ और ‘वांग’ का अर्थ होता है- ‘चुना हुआ।’ पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थान का चुनाव मेराग लामा लोड्रे ग्यामत्सो के घोड़े ने किया था। मेराग लामा लोड्रे ग्यामत्सो एक मठ बनाने के लिए किसी उपयुक्त स्थान की तलाश कर रहे थे। उन्हें ऐसी कोई जगह नहीं मिली, जिससे उन्होंने दिव्य शक्ति से मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करने का निर्णय लिया। प्रार्थना के बाद जब उन्होंने आंखे खोली तो पाया कि उनका घोड़ा वहां पर नहीं है। वह तत्काल अपना घोड़ा ढूंढने लगे। काफी परेशान होने के बाद उन्होंने अपने घोड़े को एक पहाड़ की चोटी पर पाया। अंतत: इसी चोटी पर मठ का निर्माण किया गया और तवांग शब्द की व्युत्पत्ति हुई।
प्राकृतिक सुंदरता के मामले में #तवांग बेहद समृद्ध है और इसकी खूबसूरती किसी को भी मंत्रमुग्ध कर देती है। यहां सूरज की पहली किरण सबसे पहले बर्फ से ढंकी चोटियों पर पड़ती है और यह नजारा देखने लायक होता है। वहीं सूरज की आखिरी किरण जब यहां से गुजरती है तो पूरा आसमान अनगिनत तारों से भर जाता है।
अगले दिन हमने ऐतिहासिक तवांग मठ का दर्शन किया और स्मारक को भी देखा ।#तवांग_मठ भारत का सबसे बड़ा मठ है और पोटाला पैलेस के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मठ। यह अरुणाचल प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में है जो तवांग नदी की घाटी में स्थित है। यह 17 वीं सदी के दौरान मेरा लामा द्वारा स्थापित किया गया था। यह मठ पांडुलिपियों, पुस्तकों और अन्य कलाकृतियों के अद्भुत संग्रह के कारण भी प्रसिद्ध है।
#तवांग_वॉर_मेमोरियल: वास्तव में चीन से युद्द के दौरान हमारी वीर सेना ने किस प्रकार दिलेरी से लड़कर दुश्मनों के छक्के छुड़ाए इसका वृतांत आँखों के सामने उतार देता है #तवांग_वॉर_मेमोरियल। दुश्मनों के हथियार देख मन गौरव से भर गया। वहाँ कोरिया ब्रिगेड का बेस भी है। वही नॉन सीएसडी कैंटीन से हम लोगों ने भगवन बुद्ध की मूर्ति ,बैग, छाता और सजावट के सामान भी ख़रीदे। पार्क से सुन्दर शहर का नजारा दिख रहा था।
तवांग से वापसी हमने #बोमडिला के मार्ग से की रास्ते भर सुंदर नजारों ने थकने नहीं दिया बोमडिला में रात रूककर हम शाम तक गोवाहटी पहुंच गए। गुवाहाटी में पूर्व तिरुपति श्री बालाजी मंदिरमें भगवान वेंकटेश्वर का दर्शन कर मन अभिभूत हो गया। मंदिर की वास्तुकला तथा साफ सफाई ने प्रभावित किया। मंदिर के अंदर प्रसाद चढ़ाना मन था। काउंटर से ही प्रसाद मिला तथा पैक ही ले जाना था। यह व्यवस्था हमारे बनारस के मंदिरों में भी हो जाए तो काफी साफ-सफाई रह सकती है।
गुवाहाटी में शाम को महिला मंडली सीमा जी,पिंकी जी और प्रियंका जी ने प्रशांत जी के साथ जमकर खरीदारी की तथा पाश्चात्य भोजन का लुत्फ़ उठाया। हमने भी वरिष्ठ अतुल जी ,अलोक जी,अर्चना भाभी ,भतीजे अक्षत और पुत्र आर्यमन के साथ पिज़्ज़ा व केएफसी में अलग किस्म का भोजन किया। सुबह सबको जल्दी वापसी के लिए ट्रेन पकड़नी थी। लिहाजा सब रात में ही पैकिंग कर सो गए। हमारे पायलट मिस्टरबोरो ने प्रातः हमें गुवाहाटी रेलवे स्टेशन तक पहुंचाया और वही से हमारी जीवन यात्रा वाराणसी के लिए प्रारंभ हो गयी।
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