बिहार विधानसभा में भाजपा नीत एनडीए की बड़ी हार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना में नितीश कुमार के विकास कार्यों पर मुहर लगा दिया है। इसके साथ ही महागठबंधन की महाविजय से एक और बात साफ़ हो गयी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ख्याति कम हुई है और काम करने का तरीका लोगों को पसंद नहीं आ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के चाल,चरित्र और चेहरे पर भाजपा ने पूरा विधान सभा चुनाव लड़ा है ,ऐसे में हार की पूरी जिम्मेदारी इन्ही दो नेताओं और इनके रणनीतिकारों की है। हार 179 बनाम 59 से करारी हुई है। प्रधानमंत्री और अन्य भाजपा नेताओं को अपनी भाषा पर भी विराम लगाने की आवश्यकता है।
गाय ,बीफ ,जंतर- मंतर ,हिन्दू मुस्लिम मुद्दों की एक नहीं चली इसके उलट संघ प्रमुख मोहन भागवत का आरक्षण पर पुनर्विचार की बात और मोदी के डीएनए सम्बन्धी बयान को चालक नितीश कुमार और लालू यादव के महागठबंधन ने अपने पक्ष में भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।बढ़ती दाल और अन्य खाद्य वस्तुओं की कीमतें रोकने में विफल केंद्र सरकार के प्रति भी लोगों में खास तौर पर गृहणियों में काफी रोष था भाजपा को चाहिए था की वो मोदी की जगह स्थानीय चेहरे पर चुनाव लड़ता इससे उसके तुरुप के पत्ते मोदी की साख को इतनी जल्दी धब्बा नहीं लगता। महागठबंधन की विजय देश में आगामी राजनीति की दिशा और दशा भी तय करेंगे। यह प्रयोग भाजपा विरोधी पार्टियां आगे और बड़े पैमाने पर करने से नहीं चूकेंगी।
कांग्रेस में इस परिणाम ने ऊर्जा भर दी है। राहुल गांधी का चेहरा चमक उठा है। इस परिणाम के दूरगामी परिणाम आने तय है। वही भाजपा में भी अब मोदी और अमित शाह के विरोधियों को उनके विरुद्ध आवाज उठाने का मौका मिल गया है। शत्रुघन सिन्हा और सांसद आरके सिंह ने तो शुरुआत भी कर दी है। पार्टी के संरक्षक भी अब आवाज उठा सकते है। भाजपा की हार का असर अन्य प्रदेशों की राजनीती पर भी अवश्य पड़ेगा। अब सपा मुखिया मूलम को भी सोचना होगा की वो आगे महागठबंधन का हिस्सा बनेंगे या नहीं।
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Editor - Daily Janwarta / www.janwarta.com. President - All India Journalist Association.
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