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बंद करो प्रकृति से छेड़छाड़


डॉ राज कुमार सिंह 
भूकंप आज भी ऐसा प्रलय माना जाता है जिसे रोकने या काफी समय पहले सूचना देने की कोई प्रणाली आधुनिक वैज्ञानिकों के पास नहीं है। प्रकृति के इस तांडव के आगे सभी बेबश हो जाते हैं। सामने होता है तो बस तबाही का ऐसा मंजर जिससे उबरना आसान नहीं होता है। शानिवार को ही भरी दुपहरिया में जब लोग या तो अपने काम पर थे या फिर घरों में औरतें-बच्चे अपनी बेफिक्र जिंदगी में आने वाले इस मौत के तांडव से अनजान थे। नहीं पता था कि जिसे वे अपना घर या आशियाना समझ रहे थे वहीं कुछ ही पलों में जिंदा दफ्न होने वाले हैं। थोड़ी ही देर में एक खुशगवार माहौल चीख-पुकार में बदल गया।नेपाल और भारत में भूकंप से हुई भारी तबाही में मारे गए लोगों की संख्या एक हज़ार तक पहुँच गई है। हज़ारों और लोग अब भी मलबे में दबे हुए हैं और जीवितों की तलाश की जा रही है। भूकंप    रिक्टर पैमाने पर 7.9 मापा गया था।
भूकंप प्राकृतिक घटना या मानवजनित कारणों से होता है । अक्सर भूकंप भूगर्भीय दोषों के कारण आते हैं। भारी मात्रा में गैस प्रवास, पृथ्वी के भीतर मुख्यतः गहरी मीथेन, ज्वालामुखी, भूस्खलन और नाभिकीय परीक्षण ऐसे मुख्य दोष हैं।प्राकृतिक कारणों को छोड दे ,मानवजनित कारणों पर सोचना होगा। नदियों के बांध,जंगलों की कटाई ,खनन ,जल दोहन पर पुनर्विचार करना होगा।पर्वतों के भी रक्षा जरुरी है।
भूकंप के झटकों ने इंसान को उसकी ताकत का एहसास करा दिया।चंद मिनट के कम्पन ने आशियानो को ढहा दिया और प्रलय का एहसास करा कर रूहों को काँपने पर मजबूर कर दिया।बचे लोग लाखों करोड़ों के आशियानों को छोड़कर सडकों पर आ गए। ये वही आशियाने थे जिसके निर्माण के लिए इंसान प्रकृति और न जाने किस किस का शोषण करता है। प्रकृति भी कोई चीज है भूलिए मत। सबक लेना होगा। अब तो पर्वत,जल- थल ,वन और वायुमंडल का दोहन बंद होना चाहिए,वर्ना और भयानक स्थिति उत्पन्न होने से कोई रोक नहीं पायेगा। सरकारों को भी पर्यावरण की रक्षा के लिए ठोस कानून बनाने और कठोरता से उनके पालन का प्रबंध करना होगा। 

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