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महादेव सृष्टि के अधिपति देव:12 ज्योतिर्लिंग

शिव का शाब्दिक अर्थ है- कल्याणकारी, सुखदाता, मंगलदायक। वस्तुत: ˜शिव "परमात्मा या ब्रह्म का ही नामांतरण है, जो सृष्टि का सृजन, पालन और संहार अपनी त्रिविभूतियों (त्रिदेव) के माध्यम से करता है। विश्वेश्वर संहिता में ऋषि-मुनियों के पूछने पर सूतजी उन्हें शिव-तत्व का रहस्य बताते हुए कहते हैं, एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्मरूप होने के कारण ˜निष्कलंक (निरंकार) और रूपवान होने से साकार भी हैं। इस तिथि को शिव-शक्ति के महामिलन की तिथि बताया गया है।महाशिवरात्रि को शिव-पार्वती के विवाहोत्सव के दिन के रूप में मनाये जाने के पौराणिक उल्लेख मिलते हैं। देव देवेश्वर भगवान शिवजी के निगरुणनि राकर स्वरूप की पूजा शिवलिंग के माध्यम से होती है। ईशान संहिता में उल्लेख मिलता है कि महाशिवरात्रि को अर्थात फाल्गुन, कृष्ण चतुर्दशी की अर्धरात्रि को शिवलिंग सर्वप्रथम प्रकट हुआ था। हमारे धर्म ग्रंथों में बारह ज्योतिर्लिगों की महिमा का उल्लेख है। मान्यता है कि इन ज्योतिर्लिगों के स्मरण मात्र से मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता है और आवागमन के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिग देश के अलग-अलग भागों में स्थित हैं। इन ज्योतिर्लिगों की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवतगीता और स्कन्द पुराण में वर्णित है। देश के विख्यात दिव्य ज्योतिर्लिग -

सोमनाथ (गुजरात) सदियों पुराना यह ज्योतिर्लिग सौराष्ट्र (गुजरात) के प्रभास क्षेत्र में स्थित है। इस प्रसिद्ध मंदिर को छह बार ध्वस्त एवं निर्मित किया जा चुका है। 1022 ई. में महमूद गजनवी के हमले से इसे सर्वाधिक नुकसान पहुंचा। बाद में भी यह मंदिर कई लुटेरों और आतंकियों का शिकार बना, लेकिन इसका अस्तित्व कायम रहा। श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिग का आविर्भा व दक्ष प्रजापति और चंद्रदेव से जुड़ा है। दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं का विवाह चंद्रदेव से हुआ पर चंद्रदेव को रोहिणी सर्वाधिक प्रिय थी। इस भेदभाव से दुखी शेष पत्नियों ने पिता दक्ष को अपना कष्ट बताया तो कुपित दक्ष ने चंद्रमा को राजयक्ष्मा का शाप दे दिया। तब ब्रह्माजी के आदेश पर चंद्रमा ने प्रभास क्षेत्र में शिव की उपासना की और रोग मुक्त हुए। जन आस्था है कि इस शिवलिंग की पूजा से क्षय तथा कोढ़ आदि रोग सर्वदा के लिए समाप्त हो जाते हैं। चंद्र द्वारा पूजित होने के कारण यह सोमनाथ के नाम से विख्यात है।
मल्लिकाजरुन (कुनरूल, आंध्र प्र.) श्री मल्लिकाजरुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर दक्षिण कैलाश कहे जाने वाले शैल पर्वत पर स्थित है। कथानक है कि शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय और गणोश में पहले किसका विवाह होगा, इस पर बहस होने लगी। शर्त रखी गयी कि जो पहले पृथ्वी की परिक्रमा करेगा, उसी का विवाह पहले होगा। गणोश ने माता-पिता की परिक्रमा कर पृथ्वी की परिक्रमा का फल प्राप्त कर लिया। परिक्रमा कर वापस आने पर देवर्षि नारद ने कार्तिकेय को सारा वृत्तांत सुनाया तो वे क्रोधवश हिमालय छोड़कर क्रौंच पर्वत पर रहने लगे। माता-पिता पुत्र स्नेह में क्रौंच पर्वत पहुंच गये। कार्तिकेय को जब इसकी सूचना मिली तो वह वहां से भी दूर चले गये। कार्तिकेय के क्रौंच पर्वत पर से चले जाने पर शिव-पार्वती शैल पर्वत पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर मल्लिकाजरुन के नाम से प्रसिद्ध हुए। मल्लिका अर्थात पार्वती और अजरुन अर्थात शिव। कहते हैं कि इस ज्योतिर्लिंग की पूजा से अश्वमेध यज्ञ सरीखा फल प्राप्त होता है।
महाकालेश्वर (उज्जैन, म. प्र.) उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर भगवान शिव महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं। कहा जाता है कि महाकाल के भक्त का काल भी कु छ नहीं बिगाड़ सकते। कथानक है कि अवंति नगरी में वेदप्रिय नामक एक ब्राह्मण रहता था, जिसके चार पुत्र थे। उन दिनों वहां दूषण नामक एक असुर का आतंक था। उसने भारी सेना लेकर नगर पर चढ़ाई कर दी। उस संकट काल में वेदप्रिय ने अपने पुत्रों व नगरवासियों के साथ शिवजी के पूजा शुरू की। मगर, असुर ने ध्यानमग्न नगरवासियों को मारने का आदेश दिया। उसके सैनिक उन्हें मारने के लिए जैसे ही आगे बढ़े, शिव भक्तों द्वारा पूजित उस पार्थिव लिंग से विकट रूपधारी भगवान शिव प्रकट हुए और दुष्ट असुरों का नाश किया। इस तरह वह महाकाल के रूप में विख्यात हुए। शिव ने अपने हुंकार से दैत्यों को भस्म कर उनकी राख को अपने शरीर पर लगाया। तभी से इस मंदिर में महाकाल को भस्म लगाने की परंपरा है।
ओंकारेश्वर (म. प्र.) पौराणिक मान्यता के अनुसार, वाराह कल्प में जब सारी पृथ्वी जलमग्न थी, उस वक्त भी मार्कण्डेय ऋषि का आश्रम जल से अछूता था। यह आश्रम नर्मदा के तट पर ओं कारे श्वर में है। ओंकारेश्वर शिवलिंग का निर्माण नर्मदा नदी से स्वत: हुआ है। कहा जाता है कि कोई भी तीर्थयात्री देश के सारे तीर्थ कर ले, किन्तु जब तक वह ओंकारेश्वर आकर किये गये तीर्थो का जल लाकर यहां नहीं चढ़ाता, उसके सारे तीर्थ अधूरे माने जाते हैं। ओंकारेश्वर के साथ ही, यहां अमलेश्वर ज्योतिलिर्ंग भी है। इन दोनों शिवलिंगों की गणना एक ही ज्योतिलिर्ंग में की गयी है।
बैद्यनाथधाम (देवघर, झारखंड) बैद्यनाथधाम झारखंड के देवघर नामक स्थान पर है। हर साल लाखों श्रद्धालु सावन में सुल्तानगंज से गंगाजल लाकर यहां चढ़ाते हैं। श्री बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग राक्षस राज रावण द्वारा स्थापित है। यहां माता सती का हृदय गिरा था। इसी कारण इसे मनोकामना ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, विश्व विजयी बनने के लिए रावण शिव का स्वरूप ज्योतिर्लिंग लंका लेकर लौट रहा था, तब दैवी इच्छा के अनुसार शिवलिंग को रास्ते में (देवघर) ही रख दिया गया और तभी से यह देव स्थान भक्तों की प्रबल आस्था का केंद्र है।

भीमशंकर (महाराष्ट्र) शिव का छठा ज्योतिर्लिग भीमशंकर है। इस मंदिर को लेकर लोगों की अलग-अलग राय है। कुछ लोग असम राज्य के कामरूप जिले में स्थित शिवलिंग को भीमशंकर मानते है, तो कुछ लोग महाराष्ट्र राज्य के पुणो जिले में स्थित भीमशंकर के मंदिर को सही मानते हैं। कथानक है कि पूर्व काल में भीम नामक एक महाबलशाली राक्षस था। उसने संकल्प लेकर ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने हेतु एक हजार वर्ष तक तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने भीम को अतुलनीय बल प्रदान किया। वरदान के कारण भीम ने इंद्र आदि सभी देवताओं, यहां तक कि श्रीहरि को भी परास्त कर दिया। भीम ने शिव के परम भक्त सुदक्षिण को युद्ध में परास्त कर कारागार में डाल दिया। तब राजा सुदक्षिण ने शिव का पार्थिव लिंग बनाकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी। देवताओं और ऋषियों ने महकोशी नदी के किनारे भगवान शिव की स्तुति की। तब शिव ने राक्षस का वध किया और तभी से यह भीमशंकर शिवलिंग ज्योतिर्लिंग के रूप में विख्यात हुआ। सहयाद्रि पर्वत पर स्थित भीमशंकर यह मंदिर अत्यंत पुराना और कलात्मक है।
रामेश्वरम् (तमिलनाडु) श्री रामेश्वरम तीर्थ तमिलनाडु प्रांत के रामनाड जिले में है। श्रीराम ने जब रावण वध हेतु लंका पर चढ़ाई की थी, तब विजय की प्राप्ति हेतु उन्होंने श्री रामेश्वरम में ज्योतिर्लिंग की स्थापना की। एक अन्य शास्त्रोक्त कथा है कि रावण वध के बाद राम पर ब्रह्महत्या का क्लंक लगा था। उससे मुक्ति के लिए भगवान राम ने यहां शिवलिंग स्थापित किया। रामेश्वरम को राम के ईश्वर के नाम से जाना जाता है।
नागेश्वर (गुजरात) श्री नागेश्वर ज्योतिलिर्ंग बड़ौ दा क्षे त्र में गोमती द्वारका में है। कथा है कि भगवान शिव का सुप्रिय नामक एक धर्मात्मा, सदाचारी वैश्य भक्त था। एक बार वह समुद्र मार्ग से कहीं जा रहा था, तो दारूक नामक एक राक्षस ने उसकी नौका पर आक्रमण कर सुप्रिय सहित सभी को बंदी बना लिया। सुप्रिय ने बंदी गृह में भी शिव भक्ति नहीं छोड़ी। भगवान शिव वहां ज्योतिलिर्ंग रूप में प्रकट हुए व सुप्रिय को अपना एक पाशुपतास्त्र दिया और अंतध्र्यान हो गए। उस अस्त्र से सुप्रिय वैश्य ने राक्षसों का अंत किया और वह शिवलोक को प्राप्त हुआ।
काशी विश्वनाथ (वाराणसी) गंगातट पर स्थित काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग हिंदुओं का सबसे पवित्र तीर्थ है। मान्यता है कि काशी में प्राण त्यागने वाले को मुक्ति मिल जाती है। भगवान रुद्र मरते हुए प्राणी के कान में तारक -मंत्र का उपदेश करते हैं जिससे वह सांसारिक आवागमन से मुक्त हो जाता है। काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग किसी मनुष्य की पूजा, तपस्या आदि से प्रकट नहीं हुआ, बल्कि यहां निराकार परब्रह्म परमेश्वर ही शिव बनकर विश्वनाथ के रूप में प्रकट हुए।
त्रयम्बकेश्वर (महाराष्ट्र) श्री त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले में गोदावरी नदी के तट पर है। इस स्थान पर पवित्र गोदावरी नदी का उद्गम भी है। कहा जाता है कि त्रयम्बकेश्वर में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव के रूप में लिंग समाहित है। कहते हैं कि एक बार षड्यंत्र कर अन्य ऋषियों ने गौतम ऋषि को गोहत्या में फंसा दिया, तब ऋषि गौतम ने भगवान शिव का पार्थिव लिंग बना कर उपासना की थी। गौतम की तपस्या से शिव ज्योति रूप में यहां प्रकट हुए और उन्हें पापमुक्त किया।
केदारनाथ (उत्तराखंड) श्री केदारनाथ हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है। शिखर के पूर्व की ओर अलकनन्दा के तट पर श्री बद्रीनाथ अवस्थित हैं और पश्चिम में मंदाकिनी के किनारे श्री केदारनाथ हैं। पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत की लड़ाई में अपने परिजनों का वध करने के बाद दुखी पांडव पश्चाताप करते हुए शिव के दर्शन के लिए यहां आये थे। मगर पांडवों के पहुंचने के पहले ही वे धरती में समा गए और यहां रह गया केवल नंदी का कूबड़। भक्तजन शिव के इसी रूप की यहां उपासना करते हैं। इसके साथ ही तुंगनाथ में शिव की भुजाओं, रुद्रनाथ में मुख, मढ़ माहेश्वर में नाभि और कल्पेश्वर में जटाओं की पूजा की जाती है। इन पांचों तीर्थ स्थानों को एक साथ पं च केदार के नाम से भी जाना जाता है।
घृष्णोश्वर (महाराष्ट्र) श्री घृष्णो श्वर ज्योतिर्लिंग द्वादश ज्योतिलिर्ंगों में अंतिम है। कथानक है कि देवगिरि नामक पर्वत के समीप ब्रह्मवेता भारद्वाज कुल का ब्राह्मण सुधर्मा निवास करता था। कोई संतान न होने से उनकी धर्मपत्नी सुदेहा बड़ी दुखी रहती थी। संतान प्राप्ति हेतु सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुष्मा के साथ अपने पति का दूसरा विवाह करवा दिया किंतु बाद में ईष्र्यावश उससे उत्पन्न पुत्र की हत्या करवा दी, पर घुष्मा विचलित नहीं हुई और शिव भक्ति में लीन हो गयी। महादेव ने प्रसन्न होकर उसके पुत्र को जीवित कर दिया और घुष्मा द्वारा पूजित पार्थि व लिंग में सदा के लिए ज्योर्तिरूप में विराजमान हो गये।

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