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करिश्माई व्यक्तित्व के धनी थे बाबू भूलन सिंह


*महान व्यक्तित्व, महान कर्म और उच्च विचारधारा ही बाबू साहब की वास्तविक पहचान थी

छोटे से किसान परिवार से निकलकर पूर्वांचल में पत्रकारिता व सहकारिता की अलौकिक मशाल जलाने वाले स्वर्गीय बाबू भूलन सिंह आज होते तो शायद यही कहते “मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया”।

(डा. राज कुमार सिंह )
‘बाबू साहब ’ के नाम से विख्यात भूलन सिंह ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे कि जो भी उनके संपर्क में आता, वह उनसे प्रभावित हुए बिना न रहता था। यह कहना अप्रासंगिक न होगा कि वे एक साधारण परिवार में जन्मे असाधारण व्यक्ति थे।महान व्यक्तित्व, महान कर्म और उच्च विचारधारा ही बाबू भूलन सिंह की वास्तविक पहचान थी।

पत्रकारिता,सहकारिता तथा राजनीति के क्षेत्र में अलौकिक मशाल जलाने वाले बाबू भूलन सिंह आज 24 वीं पुण्यतिथि पर याद आ रहे है।मशहूर शायर इकबाल ने लिखा है “बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा” सच है यह।
बाबू भूलन सिंह 

छोटे से किसान परिवार से निकलकर पूर्वांचल में पत्रकारिता व सहकारिता की अलौकिक मशाल जलाने वाले स्वर्गीय बाबू भूलन सिंह आज होते तो शायद यही कहते “मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया”।

बाबू भूलन सिंह ने अनेक संस्थाओं को जन्म दिया जो आज भी अग्रणी रहकर समाज में मुकाम बनाए हुए हैं। उनके द्वारा लगाए गए पौधे आज बड़े वृक्ष बन चुके हैं तथा समाज को छांव प्रदान कर रहे हैं।
बड़ागांव वाराणसी के छोटे से गांव पतेर मे लालता सिंह किसान के घर जन्म लेने वाले बाबू भूलन सिंह दो भाइयों में बड़े थे। कक्षा 4 तक की मामूली शिक्षा के साथ बाबू भूलन सिंह ने सर्वप्रथम जीवन की शुरुआत मुनीब की तालीम लेकर की। इस कला में वह इतने निपुण हो गए की वाराणसी के विशेश्वरगंज में उनकी टक्कर के मुनीब कम ही हुआ करते थे, उनके पूछे सवाल... एक परवल में 9 सौ बिया 9 सौ बरस परोरा जिया 9 सौ परवल टूटे रोज...का उत्तर आज भी हम ढूंढ नही पा रहे।परंतु बाबूजी को तो कुछ बड़ा करना था सो शीघ्र ही कांग्रेस से प्रभावित हो कार्यकर्ता बन गए।

उन्होंने सहकारिता के क्षेत्र को चुना। उस समय के सहकारिता क्षेत्र के बड़े नाम पंडित ब्रम्हदेव मिश्र के साथ मिलकर जिला सहकारी बैंक,जिला सहकारी फेडरेशन लिमिटेड,क्रय विक्रय, होलसेल, नगरीय  सहकारी बैंक सहित अनेक सहकारी संस्थाओं व समितियों की पूरे पूर्वांचल में स्थापना की। इन संस्थाओं के माध्यम से किसानों तक खाद बीज तथा उपभोक्ताओं तक सस्ते दर पर उत्पाद उपलब्ध कराए गए। सहकारिता ने उस समय आंदोलन का स्वरूप ले लिया तथा पूरे पूर्वांचल में सहकारिता आंदोलन व समाज निर्माण में निर्णायक की भूमिका अदा की। बाबू भूलन सिंह की अगुवाई में किसानों को कभी भी खाद बीज की किल्लत नहीं हुई। रियायती दर पर खाद बीज उपलब्ध होने से पूर्वांचल में फसलें लहलहा उठी तथा किसानों के चेहरे खिल उठे हुआ। बाबू भूलन सिंह अनेक सहकारी संस्थाओं यूपी कोआपरेटिव बैंक,कृषि मंत्रालय की सहकारिता कमेटी में सर्वोच्च पदों पर रहे। भारत सरकार के अनेक महत्वपूर्ण सहकारी कमेटियों के सदस्य भी रहे।

उनकी विशेषता यह थी कि वह सब कुछ निस्वार्थ भाव से करते हैं। किसी से नाराज नहीं होते,होते भी तो बात मुंह पर कह देते तथा अगले ही पल मान जाते। काशी में लोग उन्हें शंकर भी कहते थे। क्योंकि वह निर्छल थे। कभी भी स्वयं के लिए कुछ नहीं किया सिर्फ लोगों के लिए ही जीवन अर्पित कर दिया।

बाबू भूलन सिंह ने एक छोटे से वाकये के बाद अखबार निकालने का निर्णय लिया। एक बड़े समाचार पत्र ने सहकारिता क्षेत्र की खबरों को तवज्जो नहीं दिया तो बाबू साहब ने स्वयं अखबार निकालने का फैसला कर लिया।उस जमाने में लोग कहते थे खींचो न कमानों को न तलवार निकालो,जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो’ ।

सर्वप्रथम 1968 में लीज पर लेकर सन्मार्ग अखबार का सफल प्रकाशन किया। बाबू साहब ने 1972 में वाराणसी से एक टीम बनाकर जनवार्ता का प्रकाशन शुरु कर दिया। सचमुच इस अखबार ने तोप की भूमिका निभाते हुए पूर्वांचल के आंदोलनों को आवाज दी। वंचितों को लगने लगा कि उन्हें आवाज मिल गई है। देखते ही देखते जनवार्ता हर वर्ग में छा गया। जनवार्ता ने अनेक आंदोलनों को धार दी। इमरजेंसी, हरित क्रांति तथा सहकारिता आंदोलन में निर्णायक भूमिका अदा की।इमरजेंसी में जयप्रकाश नारायण जी ने तो यहां तक कह दिया कि यदि मेरे विचारों को सुनना है समझना है तो जनवार्ता पढ़ें।संपादक श्यामा प्रसाद प्रदीप जी ने इमरजेंसी के वक्त संपादकीय कॉलम को खाली रखकर तत्कालीन सरकार को संदेश दिया था।वरिष्ठ पत्रकार पंडित ईश्वर देव मिश्र,ईश्वरचंद्र सिन्हा,धर्मशील चतुर्वेदी दशकों तक जनवार्ता से जुड़े रहे बाबू साहब अपने कर्मचारियों को परिवार का सदस्य मानते थे तथा छोटे बड़े सभी मसलों पर चर्चा करके ही निर्णय लेते थे, जिससे सभी पारिवारिक माहौल में कार्य करते थे तथा सर्वश्रेष्ठ देते थे।बाबू साहब ने वाराणसी से ही उर्दू समाचार पत्र आवाज ए मुल्क तथा सांध्य हिंदी दैनिक काशीवार्ता का सफल प्रकाशन शुरू किया। उन्होंने उर्दू अखबार निकालकर गंगा जमुनी तहजीब की मिशाल पेश की।

पूर्वांचल से जुड़े कोई भी दिग्गज राजनेता रहे हो बाबू भूलन सिंह से महत्वपूर्ण मामलों में जरूर राय लेते थे ।पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर,पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी, केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय, श्याम लाल यादव, रामधन, वर्तमान केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह, पंडित लोकपति त्रिपाठी,राज बिहारी सिंह,राजकुमार राय जैसे पूर्व व वर्तमान शीर्ष राजनेता बाबू भूलन सिंह के अत्यंत नजदीकी थे तथा वाराणसी आगमन पर एक ठहराव उनके यहां करते ही थे । भूलन सिंह ने जीवन भर कांग्रेस की एक सच्चे सिपाही की तरह सेवा की। कांग्रेस में अनेक पदों पर रहते हुए उन्होंने अपने सांगठनिक क्षमता का लाभ पार्टी को दिया।

बाबू साहेब सामाजिक आंदोलनों में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। मनुवादी व्यवस्था के खिलाफ हरिजनों को लेकर बाबा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रवेश व पूजन इसी कड़ी का एक हिस्सा था।यह आंदोलन पूरे देश में चला। सभी वर्गों को एक मानते थे, ऊंच नीच का भेद नहीं करते थे इसीलिए सबके प्रिय भी थे।उन्होंने अपना पूरा जीवन संबंधों के नाम किया।

बाबू साहब द्वारा स्थापित संस्थाएं आज भी उनके द्वारा बनाये गये मापदंडों  पर चलते हुए अपने कर्तव्यों का सफल निर्वहन कर रही है। जनवार्ता हिंदी दैनिक, www.janwarta.com  ने पत्रकारिता के क्षेत्र में व समाज में अपना अलग मुकाम बना रखा है।आज बाबू साहब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन होते तो शायद खुश ही होते। उनके द्वारा बताए सत्य-ईमानदारी के रास्ते पर हम चल रहे हैं।हमने पत्रकारिता के उच्च मापदंडों को अपनाया है। हां भौतिकवादी रेस में हम थोड़े पिछड़ जरूर गए हैं ।लेकिन उच्च मापदंडों से कभी समझौता नहीं किया जिस पर हमें गर्व भी है। बाबूजी हम सदैव आपको अपने बीच पाते हैं।

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