60 फीसद ग्रामीण करते हैं 35 रुपये पर गुजर-बसर
भारत की 60 फीसद ग्रामीण आबादी 35 रुपये प्रति दिन और लगभग इतने ही लोग शहर में 66 रुपये प्रतिदिन के खर्च पर गुजर-बसर करते हैं। यह बात आय और व्यय से जुड़े सरकारी सर्वेक्षण में कही गई।
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन [एनएसएसओ] के महानिदेशक जे दास ने अपनी रपट के संबंध में लिखा है कि औसतन प्रति व्यक्ति दैनिक व्यय के लिहाज से ग्रामीण इलाकों में यह करीब 35 रुपये और शहरी इलाकों में 66 रुपये बैठता है। करीब 60 फीसद आबादी शहरी और ग्रामीण इलाकों में इतने खर्च अथवा इससे कम पर जीवन निर्वाह करती है।
एनएसएसओ के जुलाई 2009 और जून 2010 के दौरान हुए 66वें सर्वेक्षण के मुताबिक अखिल भारतीय औसत मासिक प्रति व्यक्ति उपभोक्ता व्यय [एमपीसीई] का स्तर ग्रामीण इलाकों में 1054 रुपये और शहरी इलाकों में 1984 रुपये रहा है।
एनएसएसओ सर्वेक्षण में जाहिर किया गया है कि ग्रामीण इलाके का एमपीसीई सबसे कम बिहार और छत्तीसगढ़ में 780 रुपये पर था जिसके बाद 820 रुपये के साथ ओडिशा और झारखंड का स्थान रहा।
अन्य राज्यों में केरल का एमपीसीई सबसे अधिक 1835 रुपये और पंजाब व हरियाणा का एमपीसीई क्रमश: 1649 रुपए और 1510 रुपए रहा।
शहरों के मामले में महाराष्ट्र में सबसे अधिक शहरी एमपीसीई 2,437 रुपये रहा जिसके बाद 2,413 रुपये के साथ केरल दूसरे स्थान पर और 2,321 रुपये के साथ हरियाणा तीसरे स्थान पर रहा। बिहार में यह सबसे कम 1238 रुपये रहा।
शहरी इलाकों में एमपीसीई का मध्यमान 895 रुपये और शहरी इलाकों का मध्यमान 1502 रुपये रहा जिससे ज्यादातर आबादी के खपत के स्तर का संकेत मिलता है।अध्ययन के मुताबिक 2009-10 में ग्रामीण इलाकों में उक्त राशि का 57 फीसद खर्च खाने पर होता है जबकि शहरी इलाकों में यह 44 फीसद रहा।
इस अध्ययन से जाहिर होता है कि ग्रामीण इलाकों में प्रति व्यक्ति अनाज की खपत हर महीने औसतन 11.3 किलो रही जबकि शहरों में यह 9.4 किलो रही।एनएसएसओ के आकलन के मुताबिक योजना आयोग ने 2009-10 में शहरी इलाकों में गरीबी रेखा के लिए 28.65 रुपये और ग्रामीण में 22.42 रुपये दैनिक खपत सीमा तय की।
आयोग के आकलन के मुताबिक 2009-10 के दौरान गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या 35.46 करोड़ रही जो 2004-05 में 40.72 करोड़ थी।
भारत की 60 फीसद ग्रामीण आबादी 35 रुपये प्रति दिन और लगभग इतने ही लोग शहर में 66 रुपये प्रतिदिन के खर्च पर गुजर-बसर करते हैं। यह बात आय और व्यय से जुड़े सरकारी सर्वेक्षण में कही गई।
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन [एनएसएसओ] के महानिदेशक जे दास ने अपनी रपट के संबंध में लिखा है कि औसतन प्रति व्यक्ति दैनिक व्यय के लिहाज से ग्रामीण इलाकों में यह करीब 35 रुपये और शहरी इलाकों में 66 रुपये बैठता है। करीब 60 फीसद आबादी शहरी और ग्रामीण इलाकों में इतने खर्च अथवा इससे कम पर जीवन निर्वाह करती है।
एनएसएसओ के जुलाई 2009 और जून 2010 के दौरान हुए 66वें सर्वेक्षण के मुताबिक अखिल भारतीय औसत मासिक प्रति व्यक्ति उपभोक्ता व्यय [एमपीसीई] का स्तर ग्रामीण इलाकों में 1054 रुपये और शहरी इलाकों में 1984 रुपये रहा है।
सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों में सबसे निचले पायदान पर 10 फीसद आबादी ऐसी भी है जो 15 रुपये प्रति दिन पर जीवन यापन कर रही है जबकि शहरी इलाके में यह आंकड़ा इससे मामूली बेहतर 20 रुपये प्रति दिन का है। इसमें कहा गया है कि भारत की ग्रामीण आबादी में सबसे गरीब 10 प्रतिशत जनसंख्या 453 रुपये औसत मासिक प्रतिव्यक्ति उपभोक्ता व्यय पर गुजर-बसर कर रहे हैं। जबकि शहर के 10 फीसद सबसे गरीब लोग 599 रुपये औसत मासिक प्रतिव्यक्ति उपभोक्ता खर्च यानी एमपीसीई कर जीवन यापन कर रहे हैं।
एनएसएसओ सर्वेक्षण में जाहिर किया गया है कि ग्रामीण इलाके का एमपीसीई सबसे कम बिहार और छत्तीसगढ़ में 780 रुपये पर था जिसके बाद 820 रुपये के साथ ओडिशा और झारखंड का स्थान रहा।
अन्य राज्यों में केरल का एमपीसीई सबसे अधिक 1835 रुपये और पंजाब व हरियाणा का एमपीसीई क्रमश: 1649 रुपए और 1510 रुपए रहा।
शहरों के मामले में महाराष्ट्र में सबसे अधिक शहरी एमपीसीई 2,437 रुपये रहा जिसके बाद 2,413 रुपये के साथ केरल दूसरे स्थान पर और 2,321 रुपये के साथ हरियाणा तीसरे स्थान पर रहा। बिहार में यह सबसे कम 1238 रुपये रहा।
शहरी इलाकों में एमपीसीई का मध्यमान 895 रुपये और शहरी इलाकों का मध्यमान 1502 रुपये रहा जिससे ज्यादातर आबादी के खपत के स्तर का संकेत मिलता है।अध्ययन के मुताबिक 2009-10 में ग्रामीण इलाकों में उक्त राशि का 57 फीसद खर्च खाने पर होता है जबकि शहरी इलाकों में यह 44 फीसद रहा।
इस अध्ययन से जाहिर होता है कि ग्रामीण इलाकों में प्रति व्यक्ति अनाज की खपत हर महीने औसतन 11.3 किलो रही जबकि शहरों में यह 9.4 किलो रही।एनएसएसओ के आकलन के मुताबिक योजना आयोग ने 2009-10 में शहरी इलाकों में गरीबी रेखा के लिए 28.65 रुपये और ग्रामीण में 22.42 रुपये दैनिक खपत सीमा तय की।
आयोग के आकलन के मुताबिक 2009-10 के दौरान गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या 35.46 करोड़ रही जो 2004-05 में 40.72 करोड़ थी।
Comments
Post a Comment