वाह रे हिदुस्तान! झूठी आन, बान, शान पर करेंगे 55000 करोड़ कुर्बान
एक तरफ जहां भारतीय अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही है पैसों की तंगी विकास में बाधा बन रही है, इसके बावजूद ब्रिक्स सम्मेलन में भारत पैसा लुटाने से बाज नहीं आ रहा है। मेक्सिको में चल रहे इस सम्मेलन में भारत की तरफ से आईएमएफ को 10 अरब डॉलर (55 हजार करोड़ रुपये) दिए जाने की बात सामने आई है। भारत ये पैसा दुनिया में अपनी कमजोर अर्थव्यवस्था के बावजूद झूठी शान बनाए रखने के लिए दे रहा है।
दुनिया की पांच तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल भारत ब्रिक्स का अहम सदस्य है। इसके नाते अपनी साख बचाए रखने के लिए आईएमएफ को इतना पैसा दे रहा है। भारत की ओर से ये घोषणा ऐसे समय की गई है जब भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार मंदी की ओर बढ़ रही है। निवेश घट रहा है। नौकरियां सीमित होती जा रही है। राजकोषीय घाटे का दबाव मजबूत हो रहा है। ये सारी स्थितियां भारत के इस कदम को गलत साबित करने के लिए काफी है।
अब सवाल ये उठता है कि अगर भारत इसी 55000 करोड़ रुपये को भारतीय अर्थव्यवस्था में लगाता, तो इसका परिणाम क्या होता? सबसे अहम बदलाव तो भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती के रूप में होता। वहीं इन पैसों से विभिन्न क्षेत्रों में निवेश कर नौकरियांे की बहार लाई जा सकती थी। इसके अलावा भी इन पैसों की मदद से भारत को पटरी पर लाने के कई काम हो सकते थे। पेश है इन पर रोशनी डालती एक रिपोर्ट-
1 फीसदी घट सकता था राजकोषीय घाटा
आम बजट 2012-13 में भारत का राजकोषीय घाटा 2.5 फीसदी बताया गया था, जिसे सरकार 2 फीसदी करना चाहती है। इसके लिए सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी बेचने को विकल्प बनाया गया है, लेकिन इन 55000 करोड़ रुपये की मदद से सरकार अपने राजकोषीय घाटे को करीब 1 फीसदी तक घटा सकती है।
12 साल तक मिलती टैक्स छूट
बजट 2012-13 में सरकार को टैक्स छूट के चलते करीब 4500 करोड़ रुपये का घाटा पड़ा था। ऐसे में अगर इस पैसे का इस्तेमाल टैक्स छूट में किया जाता, तो भारत सरकार बिना घाटे के 12 साल तक लगातार टैक्स छूट मुहैया करा सकती थी, जो कि आम आदमी के हित में होता।
बन सकती है 17600 किमी सड़कें
55000 करोड़ रुपये का इस्तेमाल भारत में करके सरकार देश में अपने सड़क नेटवर्क को और मजबूत कर सकती है। वर्तमान बजट में सरकार ने 8800 किमी सड़क बनाने के लिए 25360 करोड़ रुपये आबंटित किया था। ऐसे में इन पैसों की मदद से देश में करीब 17600 किमी सड़कें बनाई जा सकती है।
सस्ता हो जाता पेट्रोल
इस 55000 करोड़ रुपये से पेट्रोलियम राजस्व को हो रहे नुकसान को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता था। वहीं कंपनियों के नुकसान की भरपाई का कारण भी इन पैसों को बनाया जा सकता था। वर्तमान में पेट्रोलियम पदार्थो पर 49000 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान सरकार को झेलना पड़ रहा है। तेल कंपनियों के मुताबिक पेट्रोल पर 8 रुपये प्रति लीटर घाटा हो रहा था, 55000 करोड़ की मदद से इस घाटे को पाटते हुए 10 रुपये तक पेट्रोल सस्ता हो सकता था।
गरीबों को मिलता 27500 किलो अनाज
बढ़ती भुखमरी के बीच भारत इस 55000 करोड़ रुपये की मदद से गरीबों को 27500 किलो अनाज मुहैया करा सकता था। वहीं इन पैसों की मदद से नेशनल फूड सिक्योरिटी बिल का 2 सालों का बजट पूरा किया जा सकता था। यानि 2 साल तक हर किसी को इन पैसों से भोजन मुहैया कराया जा सकता है।
कुल रक्षा बजट का है 25 फीसदी
आईएमएफ को दिए गए इस 55000 करोड़ रुपये को अगर देश के रक्षा बजट से जोड़ा जाए, तो ये धनराशि कुल रक्षा बजट की 25 फीसदी है। ऐसे में इस पैसे का इस्तेमाल कर भारतीय रक्षा तंत्र को और मजबूत किया जा सकता था।
एक तरफ जहां भारतीय अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही है पैसों की तंगी विकास में बाधा बन रही है, इसके बावजूद ब्रिक्स सम्मेलन में भारत पैसा लुटाने से बाज नहीं आ रहा है। मेक्सिको में चल रहे इस सम्मेलन में भारत की तरफ से आईएमएफ को 10 अरब डॉलर (55 हजार करोड़ रुपये) दिए जाने की बात सामने आई है। भारत ये पैसा दुनिया में अपनी कमजोर अर्थव्यवस्था के बावजूद झूठी शान बनाए रखने के लिए दे रहा है।
दुनिया की पांच तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल भारत ब्रिक्स का अहम सदस्य है। इसके नाते अपनी साख बचाए रखने के लिए आईएमएफ को इतना पैसा दे रहा है। भारत की ओर से ये घोषणा ऐसे समय की गई है जब भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार मंदी की ओर बढ़ रही है। निवेश घट रहा है। नौकरियां सीमित होती जा रही है। राजकोषीय घाटे का दबाव मजबूत हो रहा है। ये सारी स्थितियां भारत के इस कदम को गलत साबित करने के लिए काफी है।
अब सवाल ये उठता है कि अगर भारत इसी 55000 करोड़ रुपये को भारतीय अर्थव्यवस्था में लगाता, तो इसका परिणाम क्या होता? सबसे अहम बदलाव तो भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती के रूप में होता। वहीं इन पैसों से विभिन्न क्षेत्रों में निवेश कर नौकरियांे की बहार लाई जा सकती थी। इसके अलावा भी इन पैसों की मदद से भारत को पटरी पर लाने के कई काम हो सकते थे। पेश है इन पर रोशनी डालती एक रिपोर्ट-
1 फीसदी घट सकता था राजकोषीय घाटा
आम बजट 2012-13 में भारत का राजकोषीय घाटा 2.5 फीसदी बताया गया था, जिसे सरकार 2 फीसदी करना चाहती है। इसके लिए सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी बेचने को विकल्प बनाया गया है, लेकिन इन 55000 करोड़ रुपये की मदद से सरकार अपने राजकोषीय घाटे को करीब 1 फीसदी तक घटा सकती है।
12 साल तक मिलती टैक्स छूट
बजट 2012-13 में सरकार को टैक्स छूट के चलते करीब 4500 करोड़ रुपये का घाटा पड़ा था। ऐसे में अगर इस पैसे का इस्तेमाल टैक्स छूट में किया जाता, तो भारत सरकार बिना घाटे के 12 साल तक लगातार टैक्स छूट मुहैया करा सकती थी, जो कि आम आदमी के हित में होता।
बन सकती है 17600 किमी सड़कें
55000 करोड़ रुपये का इस्तेमाल भारत में करके सरकार देश में अपने सड़क नेटवर्क को और मजबूत कर सकती है। वर्तमान बजट में सरकार ने 8800 किमी सड़क बनाने के लिए 25360 करोड़ रुपये आबंटित किया था। ऐसे में इन पैसों की मदद से देश में करीब 17600 किमी सड़कें बनाई जा सकती है।
सस्ता हो जाता पेट्रोल
इस 55000 करोड़ रुपये से पेट्रोलियम राजस्व को हो रहे नुकसान को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता था। वहीं कंपनियों के नुकसान की भरपाई का कारण भी इन पैसों को बनाया जा सकता था। वर्तमान में पेट्रोलियम पदार्थो पर 49000 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान सरकार को झेलना पड़ रहा है। तेल कंपनियों के मुताबिक पेट्रोल पर 8 रुपये प्रति लीटर घाटा हो रहा था, 55000 करोड़ की मदद से इस घाटे को पाटते हुए 10 रुपये तक पेट्रोल सस्ता हो सकता था।
गरीबों को मिलता 27500 किलो अनाज
बढ़ती भुखमरी के बीच भारत इस 55000 करोड़ रुपये की मदद से गरीबों को 27500 किलो अनाज मुहैया करा सकता था। वहीं इन पैसों की मदद से नेशनल फूड सिक्योरिटी बिल का 2 सालों का बजट पूरा किया जा सकता था। यानि 2 साल तक हर किसी को इन पैसों से भोजन मुहैया कराया जा सकता है।
कुल रक्षा बजट का है 25 फीसदी
आईएमएफ को दिए गए इस 55000 करोड़ रुपये को अगर देश के रक्षा बजट से जोड़ा जाए, तो ये धनराशि कुल रक्षा बजट की 25 फीसदी है। ऐसे में इस पैसे का इस्तेमाल कर भारतीय रक्षा तंत्र को और मजबूत किया जा सकता था।
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