(डा राज कुमार सिंह) गुरूजी के ठहाके बनारसीपन की मिशाल थे। ऐसे ठहाके की कोई भी ठहर जाए और कुछ पल बाद ठहाके में शामिल हो जाए। कचहरी हो या कवि सम्मलेन का मंच ,अख़बार का दफ्तर हो या चौराहा ,चट्टी धर्मशील जी जहा भी जाते थे छा जाते थे। क्या कटाक्ष लिखते थे क्या व्यंग लिखते थे। स्वयं में काशी की विकिपीडिया थे। सभी काशिवाशियों को शोकसंतप्त कर दिया। प्रत्येक की व्यक्तिगत क्षति हुइ है। धर्मशील चतुर्वेदी धर्मशील जी हिंदी और संस्कृत साहित्य मर्मज्ञ और महामना मदन मोहन मालवीय के सहयोगी रहे पंडित सीता राम चतुर्वेदी के छोटे पुत्र थे। इनके बड़े भाई जयशील चतुर्वेदी काफी पहले निधन हो चुका है। बहन जयशीला चतुर्वेदी एक विद्यालय की संचालिका हैं। इनकी भांजी प्रो कल्पलता पांडेय महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में चीफ प्राक्टर रहीं। धर्मशील चतुर्वेदी काशी की गंगा जमुनी तहजीब के जिंदा व्यक्तित्व का नाम है। ऐसा खुशदिल व्यक्तित्व जिसने पूरी तरह से बनारसीपन को जीया, वह अब लोगों को हंसाते हंसाते रुला गया। धर्मशील जी के बारे में जितना भी कहा जाए सूरज को दीपक दिखाने सरीखा होगा। बेलौस अपनी बात रखने वाले थे धर...
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